The Ancient Love Story...Chapter 1
The Ancient Love Story…Chapter 1
Kumbalgarh
We are talking about the time when
Banbir had betrayed the royal family of Mewar and had usurped the throne. He
had already killed and captured Vikramaditya, the third son of Rana Sanga and
was all set to kill Prince Udai. The brave and beloved Panna Dai saved Prince Udai
Singh. She took Udai Singh and fled out of Mewar to keep the young prince alive
and safe. They moved from one place to another in search of protection, but
somebody had spread a word that an unruly servant had stolen from the palace of
Mewar, so were not to be helped. In the end, Asha Shah Depura, a Jain merchant
of Kumbalgarh who was the governor of that area, gave him shelter. Asha Shah Depura
had spread the misleading word that Udai Singh was his own nephew.
In the meantime, Raj Rana Jait Singh had
fixed his eldest daughter, Swarup Devi’s alliance with Rao Maldeo of Marwar.
There was an assembly convened at the court of Marwar, where many kings of
importance were expected. Rao Maldeo was speaking to one of his chiefs, when he
noticed Akhey Raj Songara of Jhalore entered.
“Ah Chauhans of Jhalore,” the Rao said
looking in the direction of the main gate and went to greet them as they dismounted
from their horses. “Akhey Raj Songara, welcome. How are you? How are your
daughters?
“Greetings to you too, Rao Maldeo. I
am very fine, thank you. As for my daughters, they are all spoken for. By the
way, is this not the question why we have assembled here today?”
“We are here to discuss marriage,” said
Rao Maldeo not hiding his disappointment.
“Marriage indeed, but not yours. Or
have you forgotten that the throne of Mewar needs its heir and the heir needs a
wife?” reminded Akhey Raj
“Marriage of Banbir! “
“That man is no heir, he is a
usurper!” Akhey Raj paused. “The throne of Mewar has been empty long enough. It
is time for the real heir to return.”
“But there is no heir.” Rao Maldeo
protested, “Banbir is a bastard he has no right over the throne of Mewar.”
“Exactly! Like you said, Banbir is not
the official son and bastards do not inherit thrones.” Akhey Raj paused, “That
is why this question of marriage is so important.”
“First we need a legitimate heir,” Rao
Maldeo objected.
“We have one…”
“An adopted one?”
“No…
“Then who?” Maldeo said exasperated.
“No less than Great Rana Sanga’s son”
Akhey Raj announced triumphantly.
“Impossible!” Maldeo said laughingly, “Rana
Sanga’s all sons are dead. Banbir made sure of that.”
“Banbir thought that he had killed all
of the sons, but Udai was spared.”
“How is that possible? I had a word
from Karamchand himself that Banbir had put his sword through Prince Udai the
same night he had killed Vikramaditya.”
“But things did not go as they
appeared.”
“And pray how did things go? Would you
care to explain?”
“I had a word with the governor of the
town of Kumbalgarh that an illustrious guest has been staying at the fortress
for a few years now…
“Yes, his nephew. My dear Akhey Raj
you are not telling us anything new.”
“With a wet-nurse from the Mewar Royal
Family?”
“Do you know the woman? Can you
recognize her?” asked Rao with curiosity.
“Not really, I haven’t met her, which
is why I am not going alone. Raj Rana Jait Singh has agreed to accompany me. He
not only knows Panna Dai like his mother, but also knows Prince Udai very well.
Here comes Raj Rana Jait Singh.”
That is when Raj Rana Jait Singh entered
greeting.
Rao to Akhey Raj, “When your business of
recognition is over, maybe you could spare one of your daughters for me.”
“Please take no heed to our honorable
friend. I have already promised him my elder daughter but she is still a
child.” Raj Rana killing the mood.
“Your Jeevant Kunwar is of child bearing
age, is she not?” Maldeo asked Akhey.
“Yes, but as I said, all my daughters
are spoken for, especially Jeevant Kunwar.” Akhey answered irritably.
Ah, I see.” Maldeo said opening his
eyes wide, “You plan to marry Jeevant Kunwar to the heir of Mewar…..is that not
the plan?”
The smile on Akhey Raj’s face was
saying a lot.
एक प्राचीन प्रेम कहानी.....भाग 1
Kumbalgarh
हम उस समय की बात कर रहें हैं जब बनबीर ने
मेवाड़ के राणा परिवार के साथ छल करके मेवाड़ का शिघसन हड़प लिया था. उसने राणा सांगा
के तीसरे पुत्र, विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी, और कुंवर उदय की हत्या करने वाला था. एकलिंगजी
की कृपा से साहसी पन्ना दाई ने अपने पुत्र का बलिदान देकर कुंवर के प्राण बचाए. वे
उदय सिंह को लेकर मेवाड़ से भाग गयी, क्यूंकि कुंवर का जीवित रहना बहुत ही आवश्यक
था. संरक्षण की शरण की खोज में यहाँ से वह घूमते रहे, किन्तु किसीने यह अफवाह फैलाई हुई थी के एक
दासी ने अपने पुत्र के साथ मेवाड़ के राज महल से चोरी की है, जिसके कारण कहीं
शरणं नहीं मिली. अंत में, एक जैन व्यापारी, आशा शाह देपुरा ने कुंवर को शरणं देने की सहमति
दी, जो उस समय उस
प्रान्त के राजयपाल थे. उन्होंने इस भ्रामक शब्द का प्रसार के उदय सिंह उनके भतीजे
हैं.
इस बीच में राज राणा जैत सिंह ने अपने सबसे बड़ी
पुत्री, स्वरुप देवी, का विवाह
मारवाड़नरेश के साथ तय कर दिया था. मारवाड़ के दरबार में सभा बुलाई गयी थी, जहाँ कई राजाओं
की उपस्थिति की अपेक्षा थी. रऔ मालदेव अपने किसी सामन्त से बात कर रहे थे, जब उन्होंने देखा
की झालरे के राजा, अखेय राज सोनगरा पधर चुके थे.
"झालरनरेश!"
बोले रऔ द्वार की दिशा की और देखते हुए, और आगे बड़के स्वागत करते हैं, जब वह अपने अश्व
से उतर रहे थे. "अखेय राज सोनगराजी, स्वागत है आपका. कैसे हैं आप? और आपकी बेटियां
कैसी हैं?"
"घन्नी खम्मा, रऔ मालदेवजी. हम
तो बहुत अच्छे हैं. और रही बात हमारी बेटियों की, तोह उनकी बात चल रही हैं. वैसे आपको नहीं लगता
हम लोग यहाँ किसी और बात की चर्चा करने लिए एकत्रित हुए हैं?"
"हम सब यहाँ विवाह
के बारे में चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं," रऔ मालदेव अपनी निराशा जताते हुए.
"निसंदेह, किन्तु आपके
विवाह के बारे में नहीं. क्या आप भूल गए हैं की मेवाड़ के सिंघासन उसके
उत्तराधिकारी की आवश्यकता है, और उस उत्तराधिकारी को एक अर्द्धांगिनी की?"
"बनबीर का
विवाह!"
"वह कोई
उत्तराधिकारी नहीं है, उसने राज्य हड़पा है." अखेय राज रुकते हुए. "मेवाड़
का राज सिंघासन बहुत समय से खली है. वास्तविक उत्तराधिकारी के लौटने का समय आ गया
है."
किन्तु कोई उत्तराधिकारी नाहई है." रऔ
मालदेव विरोध करते हुए, "बंबर एक अवैध व्यक्ति है, जिसका मेवाड़ के सिंघासन पर कोई अधिकार नहीं
है."
"निसंदेह! जैसे
आपने कहा, बनबीर एक अवैध
संतान है, और अवैध संतान
उत्तराधिकारी नहीं बनते. इसीलिए विवाह का यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता
है."
"किन्तु उसके लिए
सबसे पहले हमें एक जाइज़ उत्तराधिकारी की आवश्यकता है." रऔ मालदेव विरोध करते
हुए बोले.
"है
एक......"
"गोद लिया हुआ?"
"नहीं..."
"तोह फिर
कौन...." मालदेव चिड़ते हुए.
"वीर राणा सांगा
के पुत्र से अधिक कोई उचित हो सकता है?" अखेय राज गर्व से घोषणा करते हुए.
"असम्भव!"
मालदेव हस्ते हुए बोले, "राणा सांगा के सभी पुत्र मर चुके है. बनबीर ने इस बात का
सत्यापन भी किया था."
बनबीर को लगा के उसने सभी पुत्रों को मर दिया
है, किन्तु उदय बच गए
थे."
"यह कैसे संभव है? करमचंद ने हमसे
स्वयं कहा के बनबीर ने उदय को भी उसी रात मर दिया था, जिस रात उसने विक्रमादित्य की हत्या की
थी."
"किन्तु सब वैसे
हुआ नहीं जैसे प्रतीत हुआ था."
"तोह फिर क्या हुआ
था? तनिक बताने का
कष्ट करेंगे?"
हमारी कुम्बलगढ के राज्यपाल से बात हुई, के एक तेजस्वी
अतिथि कुछ वर्षों से किले में रह रहे हैं.....
"हाँ, उनके भतीजे.
आदरणीय अखेय राज जी आप कोई नै बात नहीं कर रहें हैं."
"मेवाड़ के राज
परिवार की दाई के साथ?"
"क्या आप इस
स्त्री को जानते हैं? आपने देखा है उसे?" मालदेव जिज्ञासु होते हुए.
"नहीं, अच्छे से तोह नहीं, इसीलिए तोह हम अकेले नहीं जा रहे. राज राणा जैत
सिंहजी को अपने साथ ले जा रहें हैं. वह न केवल पन्ना दाई को जानते हैं, अपितु कुंवर उदय
से भी भली भाति परिचित हैं."
तभी राज राणा जैत सिंह दोनों को प्रणाम करते
हुए वहां आते हैं.
रऔ अखेय राज से कहते हैं, "जब आपका यह कार्य
पूरा हो जाये, सम्भवता आप अपनी किसी एक पुत्री का विवाह हमसे करवा सकें?"
"हमारे आदरणीय
मित्र का बुरा न मानियेगा, अखेय राजजी. हमने पहले ही अपनी पुत्री का विवाह इनके साथ
तैय कर दिया है." राज राणा मनोदशा को बदलने का प्रयास करते हुए.
"आपकी जीवंत कंवर
तोह विवाह के योग्य हो गयी है, है ना?"
"हाँ, किन्तु जैसा हमने
कहा, हमारी सभी
पुत्रियों की बात चल रही है, खासकर जीवंत कँवर." अखेय राज क्रोधित होते हुए, उत्तर देते
हैं."
"अच्छा, अब समझे."
मालदेव आँखें बड़ी करते हुए, "आप अपनी पुत्री जीवंत कँवर का विवाह मेवाड़ के उत्तराधिकारी
के साथ करना चाहते है.....क्यों सही कहा ना?"
अखेय राज के चेहरे पे आई हुई मुस्कान बहुत कुछ
कह रही थी.
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