The Ancient Love Story…Chapter 2

The Ancient Love Story…Chapter 2
Mewar

That was indeed the plan and the assembly approved of it joyfully. There was strong probability that a son of Great Rana Sanga had survived. As Jait Singh rode along Akhey Raj Songara, the excitement inside him grew, “I pray that the magnificent sun to look down kindly on this offspring of Sisodia, and that it has not an illusion.”
“Let’s hope that, otherwise my plans to be the grandfather of the heir to throne of Mewar will have to in vain.” Akhey said with a hope in his heart.
“I think you should first aim to be the father-in-law of the present heir to the throne of Mewar first before thinking about the chickens that have not hatched yet.” Jait Singh Said gamely.
They rode across the border of Marwar into Mewar and then turned south towards Kumbalgarh.
“Do you not think it was rather a hasty decision to bring Jeevant Kunwar with you?”  Jait asked, but Akhey Raj denied emphatically.
Some days later, the party reached their destination. Young Prince Udai saw the procession from the rooftop, while they passed through the huge gates of the fortress. “Uncle Asha Shah, they are here,” said Prince Udai with curiosity.
“Are you ready your highness?” the governor said with patronage, “Remember, you are the rightful heir to the throne of Mewar and those people need to see that. They must see those royal qualities that are inborn and not the arrogance of your brother Vikramaditya.” The governor smiled, “But I need not worry about that, you have a gentle heart.”
“You have taught me a multitude of things in these years, I’ll try my best,” the prince smiled. “Look, there’s the carriage….is that…
“Jeevant Kunwar, your future bride. As soon you have been recognized as the heir of Mewar, you will be married. Go to the court, you must meet them on your own.”
As the procession of horses and carriages stopped near the entrance of the court, Prince Udai headed towards the main gate of the court. The servants took the horses and Jait Singh approached the Royal Figure, took a long look and bowed, then turning to the king of Jhalore and proudly claimed in a loud voice, “His Royal Highness Prince Udai of Mewar.” Akhey Raj Songara stepped forward to see the future king of Mewar.
The young handsome prince had an unusual gleam in his eyes and an extravagant glow on his face with a sweet smile. He was a well-built man fit to fight anytime for his motherland. Prince Udai had all the qualities a royalty should posses.
“I welcome you, your majesty Maharaja Akhey Raj Songara of Jhalore.” Announced the prince with respect and style.
After seeing Prince Udai, Akhey Raj’s hopes were getting higher, because now he knew that his plans of having Jeevant Kunwar married to the heir of Mewar would not go in vain.
All enter the court with the courtiers greeting them as they walk in through. After everyone takes their places, Akhey Raj comes up to Prince Udai and proudly announces, “His Royal Majesty Maharana Udai Singh of Mewar!” The whole court bowed and paid the newly acknowledge king homage.
Udai took a glance at Asha Shah Depura’s face, whose eyes were filled with tears of happiness. Udai had an expression of love and gratitude on his face.
However, the Maharana had no idea about the happiness that life was going to give him. He knew he was going to get married to Jeevant Kunwar, but had no idea about his future with her.

Akhey Raj Songara’s family came down to Kumbalgarh to fix Udai’s alliance with their daughter Jeevant Kunwar. The auspicious moment was decided. Due to protocols, Udai had yet not seen Jeevant in person. He had only seen her portrait, which was of the time when she was quiet young. He had no idea about her behavior or attitude. All he could do is waiting for the marriage.

एक प्राचीन प्रेम कहानी.....भाग 2
मेवाड़ 

वास्तव में योजना तो यही थी और सभा में सभी ने आनंदपूर्वक अपनी सहमति दी. इस बात की पूरी सम्भावना थी की वीर राणा सांगा का पुत्र जीवित है. जैसे-जैसे कुम्बलगढ की और बढ़ रहे थे, जैत सिंह की उत्सुकता बढ़ती जा रहे थी, "हम प्रार्थना करते हैं कि त्रिलोकनाथ ने सिसोदिया के इस वंश पर अपनी कृपा दृष्टि बनई रखी हो, और यह हमारा कोई ब्रम्ह न हो."
"ईश्वर करे ऐसा ही हो, नहीं तो मेवाड़ के उत्तराधिकारी के नाना बन्ने का हमारा सपना मिटटी में मिल जायेगा." अखेय राज मन में उम्मीद रखते हुए बोले.
 "हमारा सुझाव है की इस समय आप भविष्य के उत्तराधिकारी के साथ सम्बन्धो के बारे में न सोचकर वर्त्तमान उत्तराधिकार के बारे में सोचे." जैत सिंह परिहास करते हुए.
मारवाड़ की सीमा से निकलने के बाद जैत सिंह और अखेय राज अपने कारवां के साथ दक्षिण दिशा में मेवाड़ में प्रवेश करते हुए कुम्बलगढ की और बढ़ते हैं.
"आपको नहीं लगता जीवंत कंवर को साथ लाने का निर्णय आपने जल्दबाज़ी में लिया था?" जैत सिंह चिंता जताते हु पूछ्तें हाँ, किन्तु अखेय राज ने बड़ी दृढ़ता से मना कर दिया.
कुछ दिन बाद, सारा कारवां अपनी मंज़िल पहुँच गया. कुँवर उदय ने सारा कारवां अपने शयन कक्ष के झरोखे से किले में प्रवेश करते हुए देखा. "अशा शाह मामा, वे लोग आ गए," कुंवर जिज्ञासु होते हुए बोल पड़े.
"आप तैयार है, हुकुम?" राजयपाल ने संरक्षण के साथ पूछा, "याद रखिये, आप मेवाड़ के वास्तविक उत्तराधिकारी है, और यह बात उन्हें दिखनी चाहिए. आपके अंदर के सभी राजसी रंग-ढंग दिखाई पड़ने चाहिए, आपके दादाभाई का अहम नहीं." रजपयपाल मुस्कुराते हुए, "किन्तु हमें उस विषय में चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है, आपका ह्रदय बोहोत विशाल और कोमल है."
"आपने इतने वर्षों में हमें अगणित बातें सिखाई है, हम पूरा प्रयास करेंगे." मुस्कुराते हुए कुंवर. "वह देखिये, वह रही पालखी....क्या वह....
"जीवंत कँवर, आपकी होने वाली अर्धांगिनी. जैसे ही आपको मेवाड़ के भविरजा के रूप में सत्यापन हो जायेगा, आपका विवाह करवा दिया जायेगा. दरबार जाके उनका स्वागत कीजिये."
जैसे-जैसे अश्वा और पलखियों का कारवां दरबार के निकट आता गया, कुंवर उदय दरबार के द्वार की और बढ़ने लगे. सेवकों ने आकर अश्वों को सम्भाला ओर जैत सिंह मेवाड़ के राजवंशी की और बढ़तें हैं. जी भर के देखने के बाद, झलोरनरेश की ओर मुड़के गर्व के साथ घोषणा करते हुए कहते हैं, "मेवाड़ राजघराने के कुलदीपक, कुंवर उदय सिंह." अखेय राज सोनगरा मेवाड़ के भावी राजा को देखने के लिए आगे बढ़तें हैं.
एक सुंदर युवक थे कुंवर उदय. आँखों में असाधारण चमक और मुख पर असामान्य तेज के साथ उनके होठों पे एक प्यारी सी मुस्कान थी. वे सत्रा वर्ष के एक रिश्त-पुष्ट योद्धा थे जो मातृभूमि के लिए लड़ने कभी भी तैयार होते. कुंवर उदय एक सर्वगुण संपन्न राजवंशी थे.
"झलोरनरेश अखेय राज सोनगराजी, आपका स्वागत है." आदर और शैली से बोले कुंवर.
कुंवर उदय को देखने के बाद, अखेय राज निश्चिन्त हो गए थे, क्यूंकि वे जानते थे, की अपनी पुत्री को मेवाड़नरेश की पत्नी बनाने का उनका उद्देशय अब पूरा होने वाला था.
सभी दरबार में प्रवेश करते हैं और मंत्रीगण उनका स्वागत करते हैं. जब सब अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं, तब अखेय राज सोनगरा आगे बढ़के कुंवर उदय को मेवाड़ का भविरजा घोषित करते हैं, "मवरनरेश महाराणा उदय सिंह." सभी दरबारी प्रणाम करते हुए नए राजा को स्वीकार करते हुए अपनी सहमति देते हैं.
किन्तु महाराणासा को इस बात का बिलकुल ज्ञात नहीं था, के उनके जीवन में कितनी खुशियां अने वाली है. वे यह तो जानते थे के उनका विवाह जीवंत कँवर से होने वाला है, किन्तु उनके साथ अपने भविष्य के सन्दर्भ में उन्हें कुछ नहीं पता था.
अखेय राज सोनगरा के परिवारजन जीवंत कुंवर और उदय सिंह का रिश्ता तैय करने के लिए कुमबलगरह आते हैं. विवाह का शुभ  महूरत तैय किया जाता है. मरयदा के कारण, उदय ने अभी तक जीवंत को रूबरू में नहीं देखा था, केवल उनका चित्र देखा था जो बोहोत पहले का था. उदय को उनके चरित्र या बर्ताव के बारे में कुछ नहीं पता था. अब बस विवाह मंडप में जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

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